I only wanted to post poems but I never knew that someone can write about vegetables in such a poetic way. I am suddenly hungry and also a little jealous of those who live in the valleys on India and have access to such nature gifts.
Here is Ruchi Rana’s fresh piece on the absolute freshness. Read on. (Follow @rushuvi on Twitter.)
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गंगा जी के जल से ओत प्रोत दूर दूर फैले हुए खेतों की मिटटी , आबो हवा, और कार्तिक ,पौष, माघ के जाड़े की सर्वोत्कृष्ट धूप ही अपने यहाँ की सब्ज़ियों को एक ख़ास ही स्वाद , रंग, और महक देतीं हैं। हमारे यहाँ कहा जाता है की जाड़े की सब्ज़ियों का अच्छी मात्रा में सेवन कर लेने से पूरे साल की सेहत बन जाती है . ज़रा मूली का स्वाद देखिये ….एक अनूठी मिठास के साथ एक झंनाहट का एहसास बड़ी देर तक टिका रहता है …मूली के पत्ते अगर ताज़े हो तो भाई वाह ..क्या कहने ! गाजर का ये गाजरी रंग और बेजोड़ स्वाद अनूठा है …पतली लाल लाल गाजर से सजी सब्जी मंडी …भाई वाह क्या कहने !! आह जाड़े की सेम … चपटी वाली और हरी घूमी वाली ….ऐसी ताज़ी खेत की तोड़ी हुई बिकती है आज कल ..की हाथ से उसको तोड़ो तो उसकी आवाज़ “कट” से आती है ! करमकल्ला तो जैसे मीठे रस का फल …अजीब निराला स्वाद होता है फाफामऊ से लगे सारे खेतों में आजकल करमकल्ला और गोभी का राज है ….देखिये पास से तो ऐसा लगेगा ये कुदरत का करिश्मा है कोई ऐसी सुंदर गठी हुई गोभी …गोभी फूल जैसे गहनों के नग जड़ दिए हो ! आप जो भी कहें लेकिन वो जाड़े की मीठी गोभी की ” गोभायिन्ध ” और कहीं नहीं मिल सकती ! मटर की हरी छीमी छा जाती …हर सब्जी मंडियों में मटर का पहाड़ लगता है ….1 पसेरी से क्या होगा …तौलो तौलो कम से कम पांच पसेरी …क्या मीठी छीमी है !!! पतले बैगन, गोल बैगन की देसी महक का अपना ट्रेडमार्क है . बथुआ , सोया , पालक , मेथी ….साग का बोल बाला है साहब ….ये देखिये इस मंडी में केवल और केवल साग ही बिक रहा है ….और ये ताज़ा चने का साग अभी अभी कछार से तोड़ के लायें हैं बाबू जी ….गौर करने की बात है की सब साग की गड्डियों को ये सरपत की घास से बाँध के गठ्हर बनाते हैं …अब ये मज़ा मॉल में सब्जी खरीदने में कहाँ …?! भाई जब तक मोल भाव न करा जाए , थोड़ी खट्टी मीठी बेहेस न हो सब्जी वालों से तब तक सब्जी खरीदने का मज़ा नहीं आता !
योरोप की इंडियन ग्रोसरी में भी भारत की सब्जियां मिल जाती हैं मगर यहाँ तक पहुंचते पहुंचते उनकी ” झार ” निकल जाती है और हम उन्हें यूँ ही देख कर खुश हो जाते हैं !

सर्दियाँ इतनी खूबसूरत बना दी.. रूचि जी ने.. ! शुभकामनाएँ .. लिखते रहिए.. Puh-leeeez 🙂
आंनद की अनुभूति हुई पढकर।
लिखते रहें।