ये वो कविता है जिसे कवि सम्मलेन में बार बार ‘एक बार और’ सुनाने के लिए कहा जाता है .. ये वो कविता है जिसे शायरों से दूर भागने वाले भी एक टक हो कर सुनते हैं .. ये वो कविता है जिस से आज सिरहाने का सर ऊंचा होता है .. बहुत ही सटीक, मनोरंजक और कवियों के लिए कविता .. वाह .. आइये आप भी लुत्फ़ उठाइये ..
कवि कौन है?
ये शायर क्या बला है?
तुम्हारे जैसा ही हाड़-मांस का
दो हाथ दो पैर वाला जीव है,
अगरचे, आप जैसा दिमाग न हो
दिल आपसे थोड़ा सा बड़ा रखता है |
गली के कुत्तों को
जिन्हें आप मार भगाते हैं
वो उन आँखों में भूख देख लेता है
मुर्गे की एक बांग से
अँधेरे कोहरे में सूरज ताप लेता है
ओस की बूँद को धरती पर देखकर
चाँद से घूम आता है
गंजे आसमान में
पपीहरे की एक कूक पर
काले बादल सूंघ लेता है
ख़ुशी, ग़म, रंज, इश्क़ ओ मुश्क़
जो न शब्दों में हों और न नज़रों में
कहीं कोने में बैठा बैठा पढ़ लेता है |
भांप जाता है बेरोज़गारी
नौजवां के गिरे हुए चेहरे पर
एक बच्चे की मासूम आँखों में
वहशियत का डर देख लेता है
बुज़ुर्ग झुके हुए कन्धों पर टंगी हुई
और नज़रों में छिपी
अनकही लाचारी, उस से नहीं छुपती
ये वो है जो सब बोल देता है
निडर, बेख़ौफ़, बेधड़क
जिसे सोचते हैं आप भी
शायद बोलना भी चाहते हैं
लेकिन नहीं कर पाते |
वो बात करता है तो बुरा बनता है
कभी सनकी, कभी आदर्शवादी
कभी निराशावादी, कभी पागल
और कभी देशद्रोही भी बुलाया जाता है
अजीब सी धुन सवार रहती है उस पर
बातों की लड़ियाँ पिरोता रहता है
बिना किसी उम्मीद के
पता है उसको
जीवन भर हो न हो, शायद उसके बाद
कोई, शायद कोई, उसकी बातें पढ़े
उसे समझे, और कहे – वाह वाह
या फिर शायद ऐसा न भी हो
उसके अ’शार शायद चूरन बाँधने के काम आएं |
ऐसे प्राणी, ये बला, होती है
सख़्तजान, ढीठ और बस न हिलने वाली
जो कभी कवि और कभी शायर कहलाती है |
Apni kavita se zyaada achhi mujhe ye intro lag rahi hai 🙂 :P. Thanks a lot for the opportunity.
स्टेट्स : “कवि प्रजाति” का हिस्सा बनने की तीव्र तलब लगी है…
शब्द खुबसूरत, विचार बहेतरीन ___/\___
Thank you Kush for the kind words. Let the tribe grow 🙂 Amen.