A beautiful ‘nazm’.. Although it needs slight polishing, I liked the style, the graph and the lesson.Wonderfully put together.Reminds me of numerous conversations with my self.
Anuradha
Title : थोड़ा डर रहने दो..
Written By : Siddhant @Siddhant01
This poetry is about believing in self and decisions we make in life.
बड़ी दूर है उसका घर, तो रहने दो..
वो हमसे हैं बेखबर, तो रहने दो..
उसे दिल में रखना, है ख्वाहिश अपनी..
उसके हाथों में है, खंजर तो रहने दो..
पहली दफ़ा मिले थे, हम सितंबर में..
उसे याद है नवंबर, तो रहने दो..
कल यहीं थे वो, उड़ गए तो क्या..
थके परिंदों के लिए, शज़र रहने दो..
उसे गहराई पर हैं गुमान, तो होगा..
तुम अपना अलग, समंदर रहने दो..
वो छोड़ गए साथ, तो मर्जी उनकी..
तुम जारी अपना, सफर रहने दो..
मुझे रखा है अब तक, तुने जमीं से जुड़ा..
ऐ खुदा! मुझमें तेरा, थोड़ा डर रहने दो..
अच्छा प्रयास है
थोड़ा काम और हो सकता था
अंतिम दो पंक्तियाँ गैर ज़रुरी लगीं
लिखते रहें, सीखते रहें।
अंत में आपने थोडा-सा खींच दिया,
अब लिख दिया है, तो चलो रहने दो।
Kya khoob likha hai bhaiya
lafzo’n ne dil chhoo liya .. 🙂
एक नया अंदाज, एक नया प्रयास…
बधाई हो भाई, लिखते रहिए 🙂