Kuhu, First of all I thank you for taking out the time to read each story and giving us your valuable feedback. I know class of 2016 will definitely work with these points.
Rahul, when the photo is as good, story writing comes natural. Thank you.
Class of 2016, this time the topic was as easy as it was difficult. When the first emotion is very obvious, it is difficult to find newer aspect of the picture. A lot of you reached for a different angle. All stories were absolutely brilliant but some had the X-factor.. the flawless writing and that punch. Learn from the stories that stood further this week and improve.Talk to each other to see what makes a story stand out.
Dear readers, I hope you will be able to see how well these writers are progressing. They are all choosing more difficult angles and taking the graph to new levels. I hope you will find a minute to cheer the writers of your favorite stories. Yes, you can have more than one favorite.
Anuradha
एक परिवार ऐसा भी By Fayaz Girach
@shayrana
” इसमें तीन ₹ कम हैं “
” और ये लाखों की मुस्कान भी तो है “
खिलौने बेचकर दुनियाभर के बच्चों का प्यार प्राप्त करती जिनके परिवार में, “सोनी” और “टोनी” ही थे।
आज भी वो कुटिया में अपनी मूंगफली और बिस्कुट के लिए रुके थे।
लेकिन बाहर ये औरत पुराने दिनों को फूँक कर, पानी के परपोटो में ज्वलंत यादों को देख रही थी।
पति के जीवित होते हुए भी, विधवा की तरह जीवन व्यतीत करना पड़ा…..।
इंसानी धोखेबाज़ी के कारण ही उसने गिलहरी और कुक्कुर के लिए कुटिया बनवाई थी, शादी वाले कँगन बेचकर।
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वो देखो By Varun Mehta
@funjabi_gabru
अचानक आयी उस आवाज ने जैसे माया को नींद से जगा दिया, खोई थी जैसे वो अपने दुःखो में मुड़ी तो देखा, उसके मोहल्ले के बच्चे खेल रहे है, साबुन के बुलबुले बना कर, जैसे कुछ और है ही नहीं दुनिया में इतनी छोटी से बात में इतनी ज्यादा खुशियाँ ??
माया सोचने लगी “कितनी खुशियाँ है मेरे आस पास, छोटी ही सही पर बहुत है, जिंदगी भर के लिए” बुलबुले बनाते हुए, जिंदगी की माया, शायद माया की समझ में आ गयी |
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फूँक By Mohammad Rizwan
{♠♣♥♦ Top Story Of The Week} {Photographer’s Pick} {Aaj Sirhaane Distinction}
@rizwan1149
अपने बच्चों का पेट पालने के लिए कमला के पास और कोई हुनर नहीं था। वह रोज़ शाम यहां आ जाती जहाँ उसकी फूंक से निकलने वाले रंग बिरंगे बुलबुले वहाँ घूमने आने वाले बच्चों को हैरान करते| बच्चे उससे वह खिलौना खरीद कर उसी करतब में लग जाते।
लेकिन कमला के अपने खुद के बच्चों को इस खेल से कोई सरोकार ना था। उन्हें तो बस माँ कि उस फूँक से मतलब था जिस से कमला घर के चुल्हे में आग सुलगाती थी। उस चूल्हे कि आग और उस से आती खाने कि सुगन्ध उन्हें इन पानी के बुलबुलों से कहीँ अधिक सुहाती थी।
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रंगीन बुलबुले By Vishal Gupta
{Aaj Sirhaane Distinction}
@VehlaVishal
“प्रणाम माता जी, ये सामान लाए थे आप सब के लिए”
वृद्धाश्रम में समाज सेवा करने आए राकेश ने एक वृद्ध से कहा |
“सामान तो बहुत से लोग दे जाते हैं बेटा, पर ….”
“पर क्या माता जी, बताईये”
“सामान से इस बेरंग ज़िन्दगी में वो रंग नहीं भर सकते जो मेरा पोता मेरी मन में भर देता था”
राकेश भागकर अपनी कार से कुछ ले आया
“अगली बार जब आपको याद आये तो इस से पानी के रंगीन बुलबुले बना लीजियेगा.. ये मेरे बेटे का है .. अगली बार मैं उसे आपसे मिलवाने लाऊंगा|”
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इज़्ज़त की रोटी By Mohammed Kausen
{Photographer’s Pick} {Aaj Sirhaane Distinction}
@mohdkausen
“एक फिरकी के दस रूपये ज्यादा है आठ मिलेंगे।”
“आठ तो कम है।”
“अरे….रख लो अम्मा कहाँ ले जाओगी इतना पैसा।”
“बेटी पेट भर जाये वो ही बहुत है।”
“आप के बच्चे नही है ?”
“राम जी बनाये रखे दो बेटे है।शहर में रहते है।”
“फिर खिलौने क्यों बेचती हो,बेटे पैसे नही भेजते क्या ?”
“अकेले पेट के लिए क्यों बच्चों के सामनेे हाथ फैलाऊँ। महंगाई में उनका ही गुजारा मुश्किल से होता होगा। वैसे खिलौने बेचकर मेरा समय भी बीत जाता है।और इज़्ज़त की दो रोटी भी मिल जाती है।” दो आंसू चेहरे की सलवटों में समा गए।
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रिश्ते By Ajay Purohit
@Ajaythetwit
‘प्यारी रेवा, तुम्हारी अमानत लौटाना चाहती हूँ, अपने इस परिवार के साथ । अधिक वक़्त नहीं है मेरे पास’
पत्र, एक अरसे से अस्वस्थ, उसकी सहेली नीलिमा का था, जो एक ‘ओल्ड एज होम’ की संचालिका थी ।
तस्वीर रेवा की माँ लीला की थी, अपने पुत्र नीरव के उस खिलौने से खेलती, जो लीला ने उसे पहली बार दिलाया था । रेवा अश्रुपूरित नेत्रों से निहारती रही पत्र व तस्वीर को ।
उसे समझते देर ना लगी । अवश्य ही अपनी पत्नी के दबाव में आ, नीरव ने माँ को नीलिमा के सुपुर्द किया होगा । उसे जाना ही होगा नीलिमा के इस ऋण को चुकाने ।
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वक़्त By Ajay Purohit
{Aaj Sirhaane Distinction}
@Ajaythetwit
ये हैं रुक्मणी अम्माँ – हाट में बच्चों के खिलौने बेचती है । पैसा हो ना हो, कोई बच्चा ख़ाली हाथ नहीं जाता । उदार ह्रदय व चेहरे पर सदैव एक वात्सल्य का भाव ।
कभी ये ज़मींदार साहब की लाड़ली रुक्कू व कुँवर प्रताप की पत्नी ‘रानी साहिबा’ हुआ करती थीं।
वक़्त के थपेड़ों ने इन्हें हालात के इस मोड़ पर ला खड़ा किया था – अपनों के सिवाय सभी अपने हों जहाँ ।
“प्रोड्यूसर से कहें मैं यह रोल बग़ैर मुआवज़े के करना चाहूँगी” उर्वशी ने ‘राइटर’ से कहा ।
वैन में बैठते हुए वह सिसक उठी “दादी, तुम्हारी कहानी को जीने जा रही हूँ आज”
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बचपन By Syed Aatirah
@SyedAatirah
कभी को सनडे ऐसी भी होती है.. आज मुहल्ले के बच्चों के साथ खेलने का ख़याल आया तो चली आई.. बचपन कितना प्यारा होता है.. फुटबॉल को ज़रा ज़ोर से लात मारी तो दूर जाके रुक गयी.. वहाँ एक बूढ़ी पानी के बुलबुले बना कर अपना दिल बहला रही थी.. सोचा शायद मुझ जेसी ही कोई मनचली होगी.. करीब गयी तो देखा की उसके पास आधी रोटी पड़ी थी.. पुरानी कंबल और धूल में लिपटा बदन..
बचपन तो सबका एक जेसा होता है बस बूढ़े होते होते अमीर या ग़रीब हो जाते है..
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शायद…. By Ajay Purohit
@Ajaythetwit
‘साहब, ये जगह safe नहीं है’ ड्राइवर ने टोका । ‘रुको, बेटी के लिये खिलौना ले लूँ’
‘अम्माँ कैसे दिया, ये झाग बनाने वाला’
नरेन बाबू कुछ दिन पूर्व फ़ूलपुर थाने के इंचार्ज बन कर आये थे । किसी केस के सिलसिले में बीरगंज जाना पड़ा, लौटते वक़्त इस बियावान में जाने क्यों रुक गये….
शाम ढलने को थी, पूनम का चन्द्रमा, बादलों की ओट से झाँकने को आतुर हो रहा था ।
प्राचीनकाल में यहाँ हाट बाज़ार लगता था, पूर्णिमा की शाम । फ़ूलपुर की एक वृद्धा खिलौने बेचने आती थी ।
कहते है…… वह आज भी आया करती है ।
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बचपन By Shikha Saxena
@shikhasaxena191
सब शांत हो जाओ ..दादी आ रही हैं …
शोर भरा कमरा अचानक खामोश हो गया …
दादी के चेहरे पर विजयी मुस्कान उभर आई ..पूरे घर में उनका दबदबा था
काश मेरी दादी भी तुम्हारी दादी जैसी होती ..कदम ठिठक गये दादी के, …नन्ही पोती मिठी को दोस्त से कहते सुनकर ..वो भी हमारे साथ हँसती-खेलती …
अगले दिन मिठी की आँखें खूबसूरत बुलबुलों के बीच खुलीं ..भाग के देखा तो दादी बना रही थी उसके खिलौने से …
शायद मैं तुमसे अच्छे बुलबुले बना लेती हूँ ..चाहे तो आजमा लो .. मुस्कुराती मिठी के साथ दादी भी अपना बचपन जी रही थी ।
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पगली By Mohammed Kausen
@mohdkausen
“इन बच्चों के साथ तुम भी बच्ची बन जाती हो .. इस उम्र में बुलबुले उडा रही हो.. जोर से फूँक मत मारना वरना बत्तीसी बहार आ जायेगी” उसने हँसकर कहा।
“आप नही जानते। एक औरत जब तक माँ न बने अधूरी होती है। इन बच्चों के बीच आकर में पूरी हो जाती हूँ। इन अनाथ बच्चों ने कभी मुझे बाँझ होने का एहसास नही होने दिया। जब ये बच्चे मुझे माँ कहकर बुलाते है। तो लगता है जैसे जीवन सफल हो गया। इसीलिए में भी कोशिश करती हूँ कि इन्हें भी माँ की कमी ना हो।”
“तुम बिल्कुल पगली हो।”
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मोहल्ले की दादी By Shikha Saxena
@shikhasaxena191
“अरे भागो-भागो पगली आ गई …”
सब बच्चे ताली बजाते हुए उसको तंग करने लगे …वो भी बच्चो को मारने दौड़ी
नन्हे से राहुल को ये सब कभी अच्छा नही लगता था ..
“छोड़ दो उन्हे जाने दो”
“तुझे वो इतनी पसंद हैं तो खेल उनके साथ ही” ..धमकाने लगे सब
मेले से राहुल बहुत कुछ लाया लेकिन सबसे ज्यादा उसे पानी के बुलबुले बनाने वाला पसंद था .. अचानक वो दौड़ते हुए उसी औरत के पास जा पहुंचा
“दादी क्या तुम मेरे साथ ये खेलोगी ?”
अगले दिन देखा .. सारे बच्चों और दादी में ज़्यादा बड़े बुलबुले बनाने को लेकर होड़ हो रही थी
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कभी हार नहीं मानना By Sanjay Roy
@only_sanjayroy
आज़ भी हर जगह से उम्मीद हारकर मैं पार्क के उसी बैंच पर जा बैठा.. जहाँ पिछले तीन दिन से एक वृद्धा औरत चेहरे पर बिना किसी शिकन के खिलौनें बेचने आती.. बच्चों का मेला सा लगा रहता और वो फूँक से साबुन के बुलबुले हवा में उड़ा कर उनको रिझाती रहती..
मैं यूँही उनके पास जाकर बैठ गया.. कुछ पूछता उससे पहले वो बोल पड़ी “बेटा! खुश रहा कर”..!
मैंने पूछा “ये कैसे कर लेती हैं आप? ये उम्र तो आपके आराम करने की है”?
वो हलके से हंसी .. “समय बहुत कुछ सिखा देता है .. जीवन में कितने भी कठिन दिन क्यूँ ना आयें .. कभी हार नहीं मानना”..!
ये शब्द मैंने पहले भी पढ़े थे किताबों में.. मग़र हक़ीक़त से इनसे आज़ रु-ब-रु हुआ..!
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माँ By Navneet Mishra
@MicroMishra
“देखा! बुलबुले बना रही है। गौरी के आने से माँ का बचपन लौट आया है।आज पूरे एक हफ़्ते बाद उठी है बिस्तर से, वो भी ख़ुद ही। भईया कुछ दिन और रुक जाओ” कनू ने ज़िद की।
“छुट्टी का तो तुम्हें पता है न, कितनी मुश्किल से मिली है। अब एक्सटेन्ड करवाना तो इम्पासिबल है। यहाँ भैया-भाभी और कनू तो हैं ही।” प्रिया ने पैक करते हुए कहा।
ट्रेन स्टेशन पर रूकी ही थी कि रोहित का फोन बजा।
“माँ नहीं रहीं” रोहित ने फोन काटते हुए भरे गले से कहा।
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बुलबुले By Pawan Goyal
{Aaj Sirhaane Distinction}
@kesariyadesi
वो अम्मा हर शाम वहीं बैठती थी, उद्योग भवन मैट्रो स्टेशन के गेट के रास्ते पर राजपथ के लॉन में। ‘सोप बब्बल’, शायद यही कहते हैं, बेचा करती थी।
“ले लो न बाबू, पाँच रूपये, बाबू!!”
झुर्रियों से भरे चेहरे पर इक फीकी सी मुस्कुराहट आती और फिर गुम हो जाती , जैसे ही मैंने ‘न’ में सिर हिला देता |
आज अम्मा नहीं दिखी तो सिगरेट जलाते हुऐ खोखे वाले से पूछ बैठा.. “बुढ़िया कहाँ गई?”
“कल मर गई बाबू, चार दिन से भूखी थी”
रेडियो पर कबीर वाणी बज रही थी.. “पानी का रे बुदबुदा अस मानस की जात..”
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बिस्तर by Anuradha Sharma
{Not part of the selection process}
@Sai_ki_bitiya
“हट्ट .. देखो तो बुड्डे का बचपना” ..
रामेश्वरी ने अपने लकवाग्रस्त पति बसेसर की और घूर के देखा ..
“एह बाबब बब्ब एह” ..
बसेसर ने फिर बोलने की कोशिश की ..
“हुंह .. जवानी में खूब खेल लिए.. अब आराम करो”
“गग्ग बा बब्ब एह“
“ना बोला ना .. तो ना!”
“बब्ब..”
अच्छा अच्छा .. निकालती हूँ..”
रामेश्वरी को अपने पति पर तरस आ गया| उसने बसेसर का मनपसंद खिलौना निकाला और फूँक फूँक कर रंग बिरंगे बुले बनाने लगी .. बसेसर बिस्तर पर पड़ा पड़ा ताली न बजा पाने की विवशता में “बब्ब बब्ब” करके हंसने और रोने लगा..
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NOTES FROM GUEST EDITOR @kuhu_bole
सभी कहानियों को एकसाथ रखने पर दो कैटिगरी साफ दिखाई दे रही हैं।
पहली श्रेणी में वे कहानियां हैं जो तस्वीर में जो दिख रहा है उसे निखार कर सामने लाती हैं। इनमें फूंक, इज्जत की रोटी, वक्त, शायद, बुलबुले जैसी कहानियां हैं। ये सभी खिलौने बेचने वाली महिला या बुजुर्ग के इर्दगिर्द घूमती हैं।
दूसरी श्रेणी उन कहानियों की है जो तस्वीर का दूसरा पहलू देखती हैं। इन कहानियों में एक परिवार ऐसा भी, रंगीन बुलबुले, रिश्ते, बचपन-1 और बचपन 2 , वो देखो, मां, कभी हार ना मानना, बिस्तर, पगली शामिल हैं।
सबसे अच्छी कहानी : फूंक -इस कहानी का प्लॉट भी अच्छा है लिखने की शैली भी। इसलिए दिल में उतर जाती है। बहुत अच्छी लगी। शब्द सीमा में भी है।
इनके बारे में भी कहना चाहूंगी
शायद – शब्द सीमा तय होने की वजह से प्लॉट चुनने में और विचार होना चाहिए था। जल्दबाजी में रहस्य खोल देती है ये कहानी। इसे लंबी कहानी के तौर पर विकसित किया जा सकता है।
मां – कहानी लिखने वाले की भाषा बहुत अच्छी है, पढ़ते हुए सीन बनता है, डायलॉग भी अच्छे हैं। इसे भी आगे बढ़ाया जा सकता है।
NOTES FROM PHOTOGRAPHER @chilled yogi :
पहली कहानी है : फूंक – उसी फूंक से अपने बच्चो की भूख और दुसरो बच्चो के खेल का वर्णन वास्तवितका के काफी करीब है.
great effort by all…what variety of viewpoints we can have…kudos writer and SKB its really so great a platform you are providing for all writers n bringing out hidden talent!!,,
Thank you Rahul 🙂
राहुल आपकी तस्वीर खुद एक कहानी कह रही थी। गेस्ट एडीटर का बहुत आभार कीमती समय और सुझाओ देने के लिए।
आज सिरहाने क्योरेटर को बधाई और धन्यवाद।
मेरे हिसाब से कहानी “इज़्ज़त की रोटी” “द बेस्ट” है।
मुझे @MicroMishra कि कहानी अच्छी लगी।
@SyedAatirah कि यह लाइन बहुत पृभावशाली लगी “बचपन तो सबका एक जेसा होता है बस बूढ़े होते होते अमीर या ग़रीब हो जाते है”
Thank you for writing for aaj sirhaane.. 🙂
Rizwan aapka bahut bahut aabhaar.. Saari kahaniya be hadd khoobsurat hai! Aap sabka shukriya mujhe apni lekhaki duniya ka hissa bananay k liye! Hum dheere dheere ek parivar ban rahe hai 🙂
Haan bilkul Aatirah 🙂 hum sab saath hain 🙂
खूबसूरत तस्वीर और बेहतरीन कहानियाँ …एक तस्वीर कितनी कहानियाँ बना जाती है
“फूँक ” कहानी दिल को छू गई ….लाजवाब 👌
Shukriya 🙏
Apne bhi मोहल्ले की दादी ki yaad dila di 🙂
Ek sach confession .. Mohalle hi daadi made me really made smile from the heart .. Just so cute
सभी कहानियां बेहद अच्छी लगी । दिल को छूने वाली..पिक्चर पोस्ट कार्ड सी अपनी कहानी खुद बयां करती सी तस्वीर है ।सभी रचनाकार और आज सिरहाने बधाई के पात्र हैं ।
Thank you Uzzwal .. Is manch ke saath jjudne ka shukriya.. Aap bhi kahaaniyaan likhiye na.. 🙂
FROM PAWAN GOEL @KESARIYADESI
सर्वप्रथम अनु जी का दिल से धन्यवाद कि मुझ जैसे कच्चे लेखक को इतने परिपक्व लेखकों के साथ विचार साझा करने और उन सबसे कुछ नया सीखने का अवसर दिया, मौका दिया कि अपना नजरिये से दिखाई देने वाली दुनिया का खाका खींच सकूं|
इस सप्ताह की निर्णयकर्ता कूहु जी का सादर अभिनंदन की मेरा प्रयास उन्हें पसंद आया, उन्हें अक्सर टी एल पर पढने का सौभाग्य मिलता है, सभी कहानियों का सटीक मूल्यांकन और चयन करने के लिये आभार|
छायाकार राहुल भाई को शुक्रिया इतनी जीवंत फोटो को हमारे सामने प्रस्तुत करने के लिये| इतने खूबसूरत छायाचित्र को १०१ शब्दों में उतार पाना असभंव है किंतु प्रयास किया और आशा है कि आपको पसंद आया होगा|
सभी साथी लेखकों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें, कागज पर स्याही से नित नई और सुंदर रंगोलियां बनाते रहिये और आज सिराहने का आंगन सजाते रहिये|
Thank you Pawan ..
thnx pawan bhai…
आज सिरहाने व अनुराधा जी को धन्यवाद ! सराहना चाहूँगा कुहु जी के शब्दों को, जो प्रोत्साहित करते हैं । सभी कहानियाँ दिल को छू गयीं !
मेरी favourite कहानियाँ रिज़वान द्वारा ‘फ़ूंक’, पवन द्वारा ‘बुलबुले’ व अनुराधा जी की ‘बिस्तर’ ।
राहुल के इस photograph ने जाने कितनी कहानियों को जगा डाला ह्रदय में – A big applause to you Rahul !
thnx ajay bhai…
ये देख अच्छा लगता है की “आज सिरहाने परिवार” हर दिन बढ़ता जा रहा है, लेखन का स्तर तो अच्छा होना ही है जब इतनी अच्छी और अलग अलग तरह की कहानियाँ पढ़ने को मिलती है, वो भी एक ही टॉपिक/picture पे |
कुहु मेम, लेखन का मूल्यांकन ही लेखक के विकास का आधार होता है, आपके वक़्त और सूचन के लिए हम आभारी रहेंगे 🙂
इस फ़ोटो की तारीफ अब क्या करू, “बुलबुले” सी है, दिखती एकदम साफ है पर ज़रा सी रौशनी में नजाने कितने रंग दीखते है, उम्दा राहुल भाई….
फुँक, रंगीन बुलबुले, इज्जत की रोटी, माँ, बुलबुले ये सभी कहानियाँ प्रभावित लगी, किसी एक को पसन्द करना बेहद मुश्किल, सभी लेखको को बधाई 🙂
येलो कॉमेंट 101 शब्द पार कर गई 😉
thnx kush bhai…
हर सप्ताह हम कहानियाँ लिखते है, दुसरो की कहानियाँ पढ़ते है, खुद को और बहेतर बनाने का प्रयास करते है… इन सब के लिए ये मंच जिम्मेदार है “आज सिरहाने” 🙂
बड़ी महेनत लगती होगी, वक़्त भी…
पर Twitter पे हिंदी लेखन को समृद्ध करने की उनकी चाह उनको कभी थकने नही देती…
हर बार कोई नया concept कोई नया जरिया लाके वो हमे लिखने को प्रोत्साहित करते है, कुछ बहेतरीन लेखको तक हमारे लफ्ज़ पहुंचाते है जो अपने अनुभव और मूल्यांकन से उसे मायने देते है…
अनु मेम, हमारे लिए बजती हर ताली में आप हिस्सेदार हो, love u !!! :))
बिलकुल सही कहा कुश भैया ने .. हर शब्द से मैं सहमत हूँ .. अक्सर एक दोस्त की तरह अनु मेम मदद करते हैं हमारी
Thank you ma’am 🙂