मंटो का लेखन अपने समय से आगे था। साहित्य में असुंदर और अशिव को न देखने की शुतुरमुर्गी पद्धति को उन्होंने तोडा और सभी परम्परा तोड़ने वालों की तरह उन्हें भर्त्सना और प्रशंसा दोनों मिले। पर उनका लिखा पढ़ने के लिए हिम्मत चाहिए…
मंटो ने अपने समय से आगे लिखा। असुंदर और अशिव को साहित्य में स्थान न देने की शुतुर्मुर्गी पद्धति को उन्होंने चुनौती दी। सभी परम्परा तोड़ने वालों की तरह उन्हें भर्त्सना और प्रशंसा दोनों मिलीं। लेकिन उनका लिखा पढ़ने के लिए हिम्मत चाहिये…
मंटो को कई लोग अभद्र लेखक समझते थे.. उन्होंने कभी भी चाशनी में डूबी हुयी कहानियाँ नहीं लिखी.. यथार्थ के धरातल में तपती हुयी लेखनी थी उनकी.. मंटो को पढ़ के आज भी रोंगटे खड़े हो जाते है.. बँटवारे का वो भद्दा चेहरा आँखों के सामने आकर खड़ा हो जाता है.. इतनी निश्चलता शायद ही किसी लेखक की कलम में मिले.. इस लेख के लिए इन्दर जी और आसमण्डलि को धन्यवाद
मंटो का लेखन अपने समय से आगे था। साहित्य में असुंदर और अशिव को न देखने की शुतुरमुर्गी पद्धति को उन्होंने तोडा और सभी परम्परा तोड़ने वालों की तरह उन्हें भर्त्सना और प्रशंसा दोनों मिले। पर उनका लिखा पढ़ने के लिए हिम्मत चाहिए…
मंटो ने अपने समय से आगे लिखा। असुंदर और अशिव को साहित्य में स्थान न देने की शुतुर्मुर्गी पद्धति को उन्होंने चुनौती दी। सभी परम्परा तोड़ने वालों की तरह उन्हें भर्त्सना और प्रशंसा दोनों मिलीं। लेकिन उनका लिखा पढ़ने के लिए हिम्मत चाहिये…
बिल्कुल सही कहा 🙂
मंटो को कई लोग अभद्र लेखक समझते थे.. उन्होंने कभी भी चाशनी में डूबी हुयी कहानियाँ नहीं लिखी.. यथार्थ के धरातल में तपती हुयी लेखनी थी उनकी.. मंटो को पढ़ के आज भी रोंगटे खड़े हो जाते है.. बँटवारे का वो भद्दा चेहरा आँखों के सामने आकर खड़ा हो जाता है.. इतनी निश्चलता शायद ही किसी लेखक की कलम में मिले.. इस लेख के लिए इन्दर जी और आसमण्डलि को धन्यवाद