चश्मे को कपोलों पर लुढ़काए, जेटली जी मुंशी नज़रों से सिया को देख रहे थे ।
सिया आज भी छोटी स्कर्ट में थी और पैर पर बना टैटू साफ नजर आ रहा था…. सिया का ये रंग-ढंग जेटली जी को बिलकुल पसंद नहीं आता था..!
“गुड माॅर्निंग “
सिया के अभिवादन का जवाब जेटली जी ने लगभग नगण्य स्वीकृति में सिर हिलाकर दिया ।
सिया को बैंक ज्वाइन किये हुए लगभग एक महीना पूरा हो चुका था । सभी लोग उसे पसंद करने लगे थे, सिवाय जेटली जी के !
सिया और जेटली जी मे छत्तीस का आँकड़ा चलता !
सिया २५-२६ वर्षीय खुले विचारों वाली मध्यमवर्गीय लड़की थी… ! अपने काम के प्रति समर्पित और जल्दी ही लोगों में घुल मिल जाने वाली ।
जेटली जी, जिनके रिटायरमेंट के सिर्फ कुछ दिन ही शेष थे, मध्यम कद काठी के सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति थे । उम्र एवं तजुर्बे में सबसे बड़े होने के कारण स्टाफ के सभी लोग उनका सम्मान करते । कारण सिर्फ यही नहीं कि वे उम्र में सबसे बड़े थे…. कारण यह भी था कि वे अपनी तुनकमिजाजी के लिये जाने जाते थे । जिस दिन स्टाफ के किसी व्यक्ति से वे सहमत ना हो पाते या स्वयं को उपेक्षित अनुभव करते…. उस दिन वो लंच टाइम में अकेले लंच करते । और फिर सारा स्टाफ ये जान जाता कि आज जेटली जी किसी से नाराज हैं ।
स्टाफ के कई सदस्यों में से एक मिस नौरीन, सिया की सहकर्मी, अधेड़ आयु की अविवाहित, खुले विचारों की, मुस्लिम महिला थीं । वो सिया के निडर, हंसमुख और समझदार व्यक्तित्व से प्रभावित थीं । परंतु जेटली जी दोनों की मित्रता को टेढ़ी नज़रों से देखते ! समय समय पर परोक्ष रूप से स्त्रियों के अविवाहित रहने के कुप्रभावों को गिनाने से ना चूकते । और जेटली जी जितनी शिद्दत से इस बात को उभारने की कोशिश करते, नौरीन और सिया उतनी ही सौम्यता और चतुरता से अपना पक्ष रखकर अपने निर्णय को सही साबित कर देतीं ।
ऐसे ही कई बार, बात-बेबात कई मुद्दों पर जेटली जी की सिया के साथ भी बहस छिड़ जाती…और अंततः दोनो में से एक को शांत होना पड़ता !
अभी कुछ दिन पहले ही जेटली जी ने सिया के खिलाफ मैनेजर को एक शिकायती पत्र भी लिख डाला था। जिसमें उन्होंने सिया के आॅफिस देर से पहुँचने और बैंक की कार्यप्रणाली के नियम तोड़ने का आरोप भी लगाया था । सिया ने नहीं सोचा था कि नौकरी पाते ही ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा और उसे खोने की नौबत आ जायेगी ..!
परंतु नौरीन और स्टाफ के कुछ लोगों की सहायता और समझदारी से वह नौकरी बचा पाने में सफल हो गयी थी । उस पर भी उसने जेटली जी को माफ कर दिया था।
एक दिन लंचटाइम में नौरीन और प्रखर जेटली जी के बारे में ही बात कर रहे थे….
“वो सब तो ठीक है, पर अभी तीन चार दिन पहले एक लड़की आई थी अकाउंट खुलवाने….”
सिया ने बैठते हुए कहना शुरू किया….
“उसने मुझसे फार्म की जानकारी के लिये कुछ पूछना चाहा तो मैंने उससे कहा कि वो जेटली जी से पूछ ले। हद तो तब हो गयी जब लगभग एक घंटे बाद मेरी नज़र उस लड़की पर पड़ी, वो तब भी वेटिंग रूम में बैठी थीे !! मैंने वहाँ जाकर उससे पूछा तो वो बोलीे कि उसे इंतज़ार करने को बोला है जेटली जी ने ! मुझे बहुत गुस्सा आया कि कोई किसी को इतना इंतज़ार कैसे करवा सकता है !!!
फिर मैंने तुरंत ही उस लड़की का काम करके उसे घर भेजा ! और जब मैंने बात की उनसे इस बारे में… ऐस आलवेज़ वो खुद को ही सही ठहराने लगे । बोले, “मैं इतने सालों से काम कर रहा हूँ, मुझे पता है लोगों से कैसे डील करना है… जो काम ज़रूरी हो , वो पहले करता हूँ… बाकी बाद में । और तुम्हे तो सिर्फ एक महीना ही हुआ है , तुम भी सीखो कि कौन सा काम पहले करना है और कौन सा टालना है । ये लोग तो आते ही हैं सिरदर्द करने ।”
मुझे बहुत ही अजीब लगा उनकी बातें सुनकर कि कैसे कोई ये बातें कह सकता है … !!”
नौरीन ने सहमति में सिर हिलाया और बोली…
“याद है ना, जब हम लोगों ने सुशील के जन्मदिन पर बाहर लंच करने का प्रोग्रैम बनाया था ..! सिया तुम तो खुद जेटली जी से कहने गयी थी चलने के लिये पर उन्होंने यह कहकर कि चपरासियों के जन्मदिन पर वे नहीं जाते और ना ही बाहर का खाना ही पसंद है, साफ मना कर दिया था..! फिर भी हमने उनसे कुछ नहीं कहा !”
सिया ने स्वीकार करते हुए कहना शुरू किया-
“इतना सब होने के बाद भी…. अब भी मुझे मुश्किलें होती हैं उनके साथ … जैसे कभी मैं उनकी बात नहीं समझ पाती तो कभी वो ! हाँ वो तो जानबूझकर ही नहीं समझना चाहते … बस इतना फर्क है ….और दूसरी बात ये भी कि हमारे स्टाफ में कभी जेटली जी का कोई काम पेंडिंग होता है तो कुछ भी करके उनकी हेल्प करती हूँ… एक्चुली हम सब यह करते हैं… पर इसी तरह अगर मुझे कभी जरूरत पड़ती है तो जेटली जी आस पास भी नहीं दिखाई देते… क्योंकि अपने से छोटे का काम करवाने में उनकी शान कम हो सकती है !!
“ये तो मैंने भी कई बार झेला है…. क्या करें…वो तो समझते ही नहीं कुछ !!”
नौरीन ने धीरे से कहा ।
“ये उनकी पुरानी आदत है । वहीं अगर कोई उनकी जान पहचान का या आॅफिस के मित्र गुप्ता जी कह दें.. तो जेटली जी नंगे पाँव दौड़ते हुए अपना सारा ज़रूरी काम छोड़कर उनका काम कर देते !”
प्रखर मुँह बनाते हुए बोला।
धीरे धीरे सिया को समझ आने लगा कि मुश्किल सिर्फ काम करने के अलग तरीके में नहीं, बल्कि आयु अंतराल की भी है.. और यही आयु अंतराल उसके लिये अब एक अग्निपरीक्षा बन चुका है….और नौकरी ! नौकरी तो जैसे जी का जंजाल बन चुकी थी…क्या करती वह!!
सिया और जेटली जी की सोच, खानपान, बोलचाल… सभी बातों में एक पीढ़ी का अंतर था । जो एक महीने में ही गहरी खाई की तरह सिया को नज़र आने लगा ।
नई नौकरी, उस पर यह ऊपरी तनाव !
सिया तो जैसे काम और इस गहरी होती खाई को पूरा करने में ही निढाल हो जाती ! फिर भी एक उम्मीद थी उसे.. कि शायद वो अपने व्यवहार और आशावादी नजरिए से काम ले तो बात बन जाये ..!
अब सिया पहले की तरह जेटली जी के साथ तर्क-वितर्क करने की बजाय धीरे से मुस्करा कर जवाब देने लगी… और कई बातों को ऐसे नज़रअंदाज करती जैसे कुछ बोला ही मा गया हो। इस बदले व्यवहार का कारण उसका भय कतई नहीं था, बल्कि परिस्थिति को दूसरी तरह से सम्हालना था।
कई बार तो जेटली जी भी हैरान होते कि इसे क्या हुआ।
अभी रिटायरमेंट के छः दिन शेष थे कि सुनने में आया जेटली जी अपने घर की सीढ़ियों से फिसल गये हैं ! डाॅ बाबू ने एक दो दिन का बेडरेस्ट बता दिया । अब तो आॅफिस में खूब चहल पहल मची…. जेटली जी ठीक होंगे कि नहीं.. कब होंगे.. वगैरह वगैरह !
सिया मन ही मन सोच रही थी कि कहीं उसने जेटली जी को ज्यादा ही तो नहीं कोस दिया ? नहीं नहीं… वो ऐसा थोड़े ही ना चाहती थी.. वो तो बस जेटली जी के साथ काम में सामंजस्य बिठाने के लिये भगवान की मदद चाहती थी…. चलो… वृद्ध हैं वो भी…. लड़खड़ा गये होंगे.. अब देखने भी जाना ही चाहिए ! पर आॅफिस के सीनियर्स ही अब तक गये हैं…. नौरीन और प्रखर भी नहीं गये…. क्या किया जाये …कहीं…कहीं जेटली जी नाराज ना हो जायें…!!
सिया इसी कश्मकश में सारा दिन बनी रही कि जेटली जी से मिलने जाये या नहीं, कहीं उन्हें अच्छा न लगा तो ?
खैर काफी सोचविचार के बाद वह आॅफिस से सीधा जेटली जी के घर पहुँची ।
जेटली जी की पत्नी ने सिया की बहुत ही प्यार से आवभगत की ।
पर सिया को घर पर देख जेटली जी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव नाचने लगे ।
सिया ने हालचाल पूछा और कुछ काम की बातें कीं ! उसने जेटली जी को तसल्ली दिलाई कि वे काम की फिक्र न करें…. दो दिन बाद ही वे सकुशल आॅफिस आ पायेंगे और फिर रिटायरमेंट की पार्टी भी तो सारा स्टाफ मिलकर करेगा !
अब तो जेटली जी को सिया के साथ किये गये उनकेे उपेक्षापूर्ण व्यवहार पर ग्लानि होने लगी… ! पर वे कहते भी तो कैसे !! वे सिर्फ इतना ही कह सके-
“आजकल के बच्चे जो ना करें वो कम है… अरे बेटा मैं कब मना कर रहा हूँ… आखिरी दिन बचे हैं…. जो मन आये वो करो… !”
और जेटली जी मुस्करा पड़े ।
सिया ने भी मौका देखकर जेटली जी को अपने घर भोजन का आमंत्रण देते हुए कहा-
“सर! आपको बाहर का खाना पसंद नहीं, उस पर सेहत का भी ध्यान रखना है…. इसलिए यदि आप दोनों हमारे घर आयें तो हमें भी खुशी होगी “
जेटली जी एवं उनकी पत्नी मना ना कर सके ।
वापस लौटते हुए सिया के चेहरे पर सुकून और खुशी.. दोनों थे ।
लेखिका : जाग्रति मिश्रा
संकलन : अग्नि परीक्षा
फुट नोट :
इस रोचक “अग्निपरीक्षा” संकलन की भाँति ही हम अन्य ऐसे कई संकलनों पर कार्यरत हैं । यह एक ऐसा अनोखा प्रयास है जिसमें संघ समीक्षा एवं टिप्पणियों के फलस्वरूप हम कहानियों को अंतिम रूप देकर आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं ।
यदि आप भी इस ‘विशेष’ कहानी लेखन कार्य मे भाग लेना चाहते हैं तो हम से ईमेल के द्वारा संपर्क करें ।
-धन्यवाद
आजसिरहाने
aajsirhaane@gmail.com
सुन्दर
Thanks 🙂
Bahut bhavpoorn kahani Jagrati!! Kisi insaan se nahi uski burai se lado par ekdum khari utarti hui. Badhai ek sundar prastuti ke liye!!
Thank you
कहानी की भूमिका काफी अच्छी बन पड़ी है.. घटनाक्रम भी बेहतरीन है.. और अंत सकारात्मक। आम जेवण में ऐसा काम देखने को मिलता है.. हमेशा युवा पीढ़ी को चंचल और लापरवाह दर्शाया जाता है जबकि प्रौढ़ वर्ग को दयनीय.. यहाँ आपने नायिका का जो चरित्र प्रस्तुत किया है वो काबिल-ए-तारीफ है
साधुवाद 😊🙏
Bohat shukriya spreet 🙂
कहानी का विवरण और शब्दों का चयन इसे उत्कृष्ट बनाता है, इस कहानी का मूल समाज का बहुत महत्वपूर्ण पर नजरअंदाज किया पहलू है, वो “खाई” समाज के ज्यादातर लोग समझ ही नहीं पाते, इस कहानी में दिखाया गया समाधान, एक सरल और सार्थक उपाय है उसे मिटाने का।
अभिनन्दन इस सोच और लेखन के लिए