मुम्बई के पास एक छोटा सा शहर जिसका हाईवे मुम्बई से वडोदरा हाईवे से सटा हुआ था…..
रात दुल्हन की तरह सितारों सी जगमगाती बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। अभी अभी बारिश होकर चुकी थी। गीली सड़कें और भी खूबसूरत लग रही थीं। दूर से छप छप की आवाज़ का शोर और एक अजनबी व्यक्ति के पदचाप की आहट…
चलता हुआ वो अजनबी दूर बने हुए सड़क के उस पार एक बार की तरफ बढ़ने लगा बार भी दुल्हन की तरह सजा हुआ था। अंदर से जोर से बज रहे डीजे की आवाज़ कान में पड़ रही थी। वो व्यक्ति अंदर प्रवेश कर गया । रौशनी पड़ते ही जब देखा तो वो गौर वर्ण का था। उसकी शख्सियत प्रभावित कर रही थी।
बार में घुसते ही उस गौरांग सुदर्शन युवक ने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई तो सारी मेजें भरी हुई थीं।मन में आया इस छोटे से शहर में इतने पीने वाले कहाँ से जुट गए। तभी कांच के खिड़की की समीप वाली मेज जिस पर दो व्यक्ति ही बैठ सकते थे एक कुर्सी खाली दिखाई दी। शिष्टता वश सामने बैठे चालीस पैंतालीस वर्ष के पुरुष से प्रश्न किया।
‘माफ़ कीजिये क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ? ‘हाँ क्यों नहीं’।
स्वर गहरा और स्थिर था। कहने वाले ने उसकी ओर देखा भी नहीं। लगता है वो किसी और ही लोक में था।
मैं सोचने लगा पता नहीं कैसा व्यक्ति है। बात करूँ या नहीं। असमंजस में ही था, इतने में वेटर ने आकर पूछा , “सर, बियर या व्हिस्की”
मैंने एक क्षण को सामने बैठे अजनबी की तरफ देखा और बोल पड़ा “”आप व्हिस्की या बियर क्या लेंगे सर”” पर जवाब नहीं मिला । मैंने बोला 1 लार्ज व्हिस्की विथ सोडा ले आओ। सिगरेट सुलगा कर इधर उधर देखने लगा। मैं खुद को सही स्तिथि में महसूस नहीं कर रहा था।
सोचा अजीब व्यक्ति है । भगवान ने भी एक ही पीस बना कर भेजा है। इतने में वो व्यक्ति उठा और एक ओर को चल दिया। शायद वाशरूम की तरफ गया था । वो शायद अपना मोबाइल टेबल पर ही भूल गया था । मैं अभी सोच ही रहा था कि मोबाईल उठा कर देखूं । इतने में उसकी घण्टी बज गयी। बजती रही। फिर असमंजस की स्तिथि कि उठाऊं या नहीं।
चारों ओर एक बार नज़र घुमा कर देखा। सब पीने में व्यस्त थे। मन में उत्सुकता हुई कि कौन है उस तरफ देखूं तो। मोबाइल उठा लिया। मैं कुछ बोलता उसके पहले ही एक महिला की आवाज़ सुनाई पड़ी।
“सुनो, जल्दी से आ जाओ एक्सीडेंट हो गया है। अस्पताल में एडमिट है वो। “
मेरी समझ में नही आया कुछ भी। मेरे मुंह से इतना ही निकला कौन से अस्पताल में ? उधर से आवाज़ फिर आयी कि सिटी अस्पताल कैंट एरिया। फ़ोन कट गया। मैंने मोबाइल टेबल पर पटका और बिना एक क्षण भी गंवाए उठ कर तेज़ी से दरवाजे की ओर बढ़ गया।
बाहर निकल कर ऑटो पकड़ा सिटी अस्पताल के लिए और निकल पड़ा। न तो महिला को जानता था न किसी और को। मैं तो मुम्बई से था और गाडी से वडोदरा की ओर बढ़ रहा था । रास्ते में हाईवे से सटे हुए बार को देखकर एक पेग लगाने की इच्छा हुई थी। मौसम आशिकाना था ।गाडी एक साइड में लगाकर उतर पड़ा था। छप छप की आवाज़ करते हुए बार की तरफ बढ़ गया था।
सोचा क्या आफत मोल ली मैंने क्यों आ गया ? पर एक अनजानी शक्ति मुझे अपनी ओर खींच रही थी। अस्पताल पहुंच कर काउंटर पर मालूमात की कि एक्सीडेंट का अभी अभी कोई मरीज दाखिल हुआ है क्या। उसने बताया आई सी यू में है। मैं गया icu के बाहर लगे शीशे में से अंदर झाँका एक 22 या 23 साल की लड़की बेहोश सी लेटी थी । ड्रिप चढ़ रही थी। अचानक पीछे से मेरे कंधे को किसी ने छुआ । मैंने पलट कर देखा। एक महिला खड़ी थी करीब 46 या 47 की उम्र की। वो बोली आप कौन? मैं फ़ोन में आयी आवाज़ से उस आवाज़ को मैच करके पहचान गया। मैंने बताया फ़ोन पर मैं ही था। वो चौंक गयी बोली फ़ोन तो मैंने उनको मिलाया था। मैंने उनको बताया कि कैसे रिसीव किया उनका कॉल और खिंचा चला आया।
महिला: धन्यवाद बेटा, मेरी बेटी का एक्सीडेंट हुआ है।
इतने में सामने से वो अपरिचित व्यक्ति अस्त व्यस्त सा आता दिखाई दिया। दूसरी बार उनकी रौबदार आवाज़ सुनी।
अपरिचित: कुमुद ! क्या हुआ ? मुझे दोस्त से पता लगी कि एक्सीडेंट हुआ है। फिर तुम्हारा कॉल भी था।
कुमुद: साक्षी ( बेटी) की स्कूटी को कोई गाडी हाईवे पर टक्कर मार कर निकल गयी थी। और वो उस गाडी वाले को गालियां देने लगी।
मैं एकदम मूर्ति सा खड़ा रह गया। क्योंकि मेरी ही गाडी ने एक स्कूटी को टक्कर मारी थी। बदहवासी में मैंने पलटकर भी नही देखा था। गाडी 110 की स्पीड से भगा ले गया था। उसी चिंता से मुक्त होने के लिए बार में पीने के लिए गाडी रोकी थी। ताकि नशे में भूल जाऊँ। मेरे कानों में उन लोगो की आवाज़ गहरे कुँए से आती प्रतीत होने लगी।
मैं अजीब सी स्तिथि में था बोलू तो क्या बोलूं। अपरिचित डॉक्टर से बात करने चले गए। मैं अपनी आत्मा पे इस पाप का बोझ लिए दो मीनट के लिए बेंच पर बैठ गया।
आई सी यू का दरवाजा खुला । एक व्यक्ति को मिलने की इजाज़त थी। मैंने पूछा क्या मैं जा सकता हूँ। इज़ाज़त लेकर अंदर गया। वो लड़की होश में थी। मुझे देखकर उसके चेहरे पे एक हल्की मुस्कान आयी। बोली आप ही थे न।
मैं बिलकुल चुप। नज़रें चुराये बोला सॉरी। मुझसे जो हुआ और सॉरी कि मैंने आपका क्या हुआ पलटकर भी नहीं देखा। उसका जवाब सुने बिना बाहर आ गया। बाहर पुलिस वाले थे पूछताछ के लिए आये थे। होश में आने की खबर सुन अंदर गया उनमें से एक बयान लेने। वो पांच मिनट बाद लौटा और अपरिचित से बोला कोई केस नही बनता है। आपकी बेटी अपने आप स्कूटी का बैलेंस खोकर टकरा गई थी। और कह कर वो चला गया।
मैंने मन ही मन प्रायश्चित की ठानी और सेवा में लग गया।
और जानते हिं .. आज हम दोनों पति पत्नी हैं। बीच की कहानी एक लव स्टोरी है जो फिर कभी सुनाऊंगा।
वो अपरिचित अब अजनबी नही रहा। दो अजनबी एक रिश्ते में बंध चुके थे।
मेरी पत्नी ने मुझे कभी बोध नही कराया कि मैंने जो किया वो गलत था । पाप था। हम आज सुकून से अपनी ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। वो मेरी बहुत इज़्ज़त करती है। पर मैं उस बोझ का क्या करूँ जो अब तक आत्मा पर है। प्रायश्चित में और क्या क्या करूँ कि आत्मा पर पड़े बोझ से छुटकारा पा सकूं।
अपरिचित
लेखिका : कांची अग्रवाल
कल्पना की उन्नत उड़ान भरकर एक सुंदर कथा की रचना की है। आशा भरा सुखद अंत भी अच्छा प्रतीत
हुआ। चलचित्र की पटकथा की तरह सूत्रों को आपने कुशलता से जोड़ा है। इतने पर भी कहना चाहूँगा कि
अति नाटकीयता से परहेज़ करने कि आवश्यकता है।
शिशिर सोमवंशी
मार्गदर्शक : कहानी सुहानी
कहानी में घटनाएं उलझी सी लगी। जैसे नीचे के दोनों कथन एक दूसरे से भिन्न है।
1-(मैं तो मुम्बई से था और गाडी से वडोदरा की ओर बढ़ रहा था । रास्ते में हाईवे से सटे हुए बार को देखकर एक पेग लगाने की इच्छा हुई थी। मौसम आशिकाना था ।गाडी एक साइड में लगाकर उतर पड़ा था। छप छप की आवाज़ करते हुए बार की तरफ बढ़ गया था)
2-मैं एकदम मूर्ति सा खड़ा रह गया। क्योंकि मेरी ही गाडी ने एक स्कूटी को टक्कर मारी थी। बदहवासी में मैंने पलटकर भी नही देखा था। गाडी 110 की स्पीड से भगा ले गया था। उसी चिंता से मुक्त होने के लिए बार में पीने के लिए गाडी रोकी थी। ताकि नशे में भूल जाऊँ।
Tq sir , आपने कमजोर चीज़ें बताई मुझे। आगे इन पर ध्यान दूंगी 💐
शिशिर sir tq i will definitely work on it in future
Reblogged this on kanchi487.