स्वलेख : April 16, 2017
मार्गदर्शक : कोशिश ग़ज़ल
विषय : मोड़
चयनित रचनाएँ
@fatimakolyari
लफ़्ज़ों की दहलीज़ पर खड़ी है
मेरी नज़्म कुछ अधूरी सी पड़ी है
इंतज़ार में किसी के गुमसुम सी
आज भी उसी मोड़ पर तन्हा खड़ी है
वक़्त के सितम से बेफिक्र बेहया सी
गली के उसी छोर पर मूरत सी जड़ी है
ज़माने की रुसवाई से बिना डरे सी
आज भी उसी मोड़ पर तन्हा खड़ी है
@BeyondLove_Iam
एक मोड़ जहाँ जिंदगी थी,
एक मोड़ जहाँ मौत ने थाम लिया,
…. चंद साँसों का फासला था।
एक मोड़ जहाँ मोहब्बत बसती थी,
एक मोड़ जहाँ नफ़रत ने बाँट दिया,
….चंद अहसासों का फासला था।
एक मोड़ जहाँ हमारा मिलन था,
एक मोड़ जहाँ बिछड़े थे हम-तुम,
….चंद लफ्ज़ों का फासला था।
एक मोड़ जहाँ आशा का उपवन था,
एक मोड़ जहाँ निराशा की खाई में हुए गुम,
….चंद होसलौं का फासला था।
एक मोड़ जहाँ विश्वास की डोर बंधी,
एक मोड़ जहाँ गलतफहमी की गांठ बनी
….चंद बातों का फासला था।
एक मोड़ जहाँ चांद भी था, आसमान भी था,
एक मोड़ जहाँ अंधेरे के सिवा कुछ न था,
….चंद रातों का फासला था।
ऐसे ही हर मोड़ पर खड़ा है,
मनुष्य जैसा दिखता हर प्राणी,
जीवन-सार को समझने की कोशिश में,
जीवन-सागर से पार हो जाने की कोशिश में,
सीधे-सपाट से लगने वाले,
तीखे मोड़ों से निकल जाने की कोशिश में!!