स्वलेख : मई 14, 2017
मार्गदर्शक : कोशिश ग़ज़ल
विषय : माँ
चयनित रचनाएं
1
बेवज़ह हँसना और खिलखिलाना चाहती हूँ
ए माँ, मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
अपनी फ्रॉक को पकड़ गोल – गोल घूमना चाहती हूँ
ए माँ मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
जीवन के सूनेपन को भूल ज़ोर से चिल्लाना चाहती हूँ
ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
बचपन के वो खेल-खिलौने , गुड्डे गुड़िया , सपन सलोने
उनमें फिर खो जाना चाहती हूँ
ए माँ मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
तेरी गोद में छुपकर खूब रोना चाहती हूँ
ए माँ, मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
बारिश के पानी में भीग कर, उछल कर
कागज़ की किश्ती चलाना चाहती हूँ
ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
क्यूँ हो गई मैं बड़ी , ये भूल जाना चाहती हूँ
ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
Archna Aggrawal @archanaaggarwa9
2
तुम्हारी उंगली पकड़ तुम्हें चलाऊं
या क्यों न तुम्हारे घुटने ही बन जाऊं
क्यों न तुम्हें अखबार पढ़कर सुनाऊँ
या तुम्हारी आँखे ही बन जाऊं
कोई ज़िद तुम करो और उसे पूरी करने
मैं उस हद तक भी हो आऊँ
कुछ लम्हों को ही सही तुम्हारी उंगलियों की
ताकत बन पाऊं
तुम्हारी सारी बातें प्यार और धीरज से सुन पाऊँ
हर निशानी को सहेज कर रख पाऊँ
मुश्किलों में तुम्हारे साथ चल पाऊँ
ज़ोर का ठहाका न सही
इक नन्ही सी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर सजाऊं
काजल, बिंदी चेहरे पर लगा
तुम्हें संवारूं सजाऊं
ज़्यादा नहीं तो
इक दिन के लिए ही सही
काश मैं तुम्हारी माँ बन जाऊँ…
Anshu Bhatia @anshu_bee
3
माँ..मेरे अंधेरों मे..उजास और धूप सी
मैं उसके सौरमंडल मे;
उसके गिर्द फिरती नक्षत्रों सी
वह मेरी शुष्कता मे
फैली हरितिमा सी/भीनी और सुगंधित
मेरी निर्जनता मे वह-
कोयल की कुहुक सी..
सर्द रातों मे नेह का कंबल ओढ़ाती हुई
दुख की बारिशों मे
वह विशाल देवदार सी
मेरे ऊपर अपनी शाखों को फैला
खड़ी है सदियों से !!
मेरे अथाह मौन मे वो
किसी प्रार्थना की गूँज सी
अपने निश्छल प्रेम की गोद मे मुझे लिटा ,
लोरी सुनाती सी..मेरी माँ !!
Uzzwal Tiwari @uzzwal_tiwari75