फ़िल्म: आमद
लेखक और निर्देशक: नीरज उधवानी
मुख्य कलाकार: साक़िब सलीम, आरिफ़ जक़ारिया, अबीर पंडित, चारु रोहतगी
बात पुरुषत्व की चली तो किसी ने नीरज उधवानी की “आमद” देखने का सुझाव दिया। नृत्य-कला की पृष्ठभूमि पर रची यह कहानी अत्यंत सम्वेदनशीलता से पिता-पुत्र के नाज़ुक रिश्ते को प्रस्तुत करती है।
कहानी का मूल संघर्ष नृत्य-कला से आरम्भ होकर, जातिगत भूमिकाओं से जुड़ी धारणाओं पर भी प्रकाश डालता है। कथक में निपुण एक पिता का अपनी कला को अपने पुत्र को सौंपने का सपना, और पुत्र का कथक को नापसंद करना, क्योंकि उसके दोस्तों के हिसाब से यह नृत्य “लड़कियों वाला” है – दोनों ही बातें रिश्तों में अनकहे द्वंद्वों को दर्शाती हैं। पिता अपने पुत्र की पसंद-नापसंद तथा इच्छाओं से परिचित नहीं है, और पुत्र को कथक की क़द्र इसलिए नहीं है क्योंकि यह नृत्य परम्परा के तहत उसे पुरुषत्व के विपरीत लगता है।
कहानी कम समय में एक पूर्ण चक्कर लेती है, और सुंदरता से उस पुत्र की कथक से जुड़ी जातिगत पूर्वधरणा को ख़त्म करती है – पैंट-शर्ट पहने पुत्र द्वारा निभाया गया कथक का आमद इस बात का प्रमाण है। फ़िल्म के इस मोड़ पर साक़िब की अदाकारी सचमुच मनमोहक है।
किंतु, जहाँ कहानी में पुरुषत्व से जुड़ी धारणाओं पर सवाल उठते हैं, वहाँ माँ की परम्परागत भूमिका में कोई बदलाव नहीं आता। आपका इस बारे में क्या विचार है?
आप भी ये फिल्म देखिये और कमेंट कीजिये ..
– अनामिका पुरोहित
#आजसिरहाने के लिए