
प्रधानमंत्री नेहरू अपनी चीन यात्रा से लौटने के पश्चात अपने गृहनगर, अलाहाबाद में एक रैली को संबोधित कर रहे थे जो निराला जी का भी निवास स्थान था. कविवर अग्रिम पंक्ति में अपनी देह पर तेल मल कर अर्ध वस्त्रों में बैठे थे. पहलवानी के प्रति उन में लगन और उत्साह था. वो
सीधे अखाड़े से आए थे. व्यायाम के उपरांत चमकता हुआ शरीर, उस पर सफेद बाल और सफेद दाढ़ी में वो सबसे अलग प्रतीत हो रहे थे. पंडित नेहरू ने अपने एक-दो प्रशंसकों से माला ग्रहण की और अपना भाषण आरंभ करने से पहले बोले, “मैं चीन से आया हूँ. वहाँ मैने एक कहानी सुनी
जिसमें एक राजा के दो बेटे थे. एक बुद्धिमान और दूसरा मूर्ख. जब दोनो बड़े हुए तो राजा ने मूर्ख बालक से कहा की तुम राज्य संभालोगे क्योंकि तुम सिर्फ़ राजा बन ने योग्य हो. किंतु मेरे बुद्धिमान बेटे का जन्म इस से कहीं बड़े कार्यों के लिए हुआ है इसलिए ये कवि बनेगा.” अपने इन्हीं शब्दों के साथ उन्होने पुष्प मालाओं को अपने गले से निकाल कर आदरस्वरूप निराला जी के चरणों की दिशा में उछाल दिया.
जहाँ “अनामिका” काव्या संग्रह का “आवेदन” नामक गीत, सकारात्मकता और आशावाद की छवि प्रस्तुत करता है, वहीं दूसरी ओर उनकी कविता “भिक्षुक” सामाज में विद्यमान दारिद्र्य और विषाद को दर्शाती है। दोनो ही निम्न रचनाओं में निराला जी की उत्कृष्ट छायवादी शैली की झलक मिलती है:
~ आवेदन ~
फिर सवाँर सितार लो!
बाँध कर फिर ठाट, अपने
अंक पर झंकार दो!
शब्द के कलि-कल खुलें,
गति-पवन-भर काँप थर-थर
मीड़-भ्रमरावलि ढुलें,
गीत-परिमल बहे निर्मल,
फिर बहार बहार हो!
स्वप्न ज्यों सज जाय
यह तरी, यह सरित, यह तट,
यह गगन, समुदाय।
कमल-वलयित-सरल-दृग-जल
हार का उपहार हो!
~ भिक्षुक ~
वह आता–
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को– भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता–
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?–
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
संदर्भग्रंथ स्रोत: